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कविता

उल्टी भाषा के सम्राट

आभा बोधिसत्व


ऐसा वे मानते हैं कि
हरामी हुए बिना नहीं रहा जा सकता
धरती पर खुश खुश!
इसके लिए वे समय को साथ लिए-
अपने हक में अपना ही न्याय अजीबो-गरीब
जिसे पूजना हो उसे थूकते हैं
जिसे थूकना हो उसे पूजते हैं।
गढ़ते है मीठा सत्य उनके लिए पोलसन जो भारी है
गढ़ते हैं उनके लिए कड़वा शब्द भोलसन (गाली) जो हल्के हैं
जो निरीह हैं बेचारे
जँचती नहीं भाषा में गाली जान कर भी चुप रहते हैं
यह जानकर अपनी धाक जमाने को आतुर...
जो ताकतवर है, लगाओ पालिस-पोलसन की भाषा
बचाओ नकली वजूद जो मरते ही खत्म हो जाना है
इनका इतिहास वजूद हमारा क्या देख रहे होते हैं असली लोग
मुट्ठी भर ही शायद
अपना क्या यह सोच सारथी चुप है... जब
लाख समझाने पर अक्ल पर पड़ा ताला कभी,
घटता है तो कभी जड़ जाता है दुगने भार के साथ ताला
दुनिया अपार नहीं चाहिए इन्हें
स्वार्थ को तज कर,
ये उल्टी भाषा के सम्राट
इनकी बातें भी अजीब-गरीब चौपट
जहाँ अटकी है सत्य की भाषा बेचारी बीमार

 


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